विधवा महिला को समाज किस नजर से देखता है 

विधवा महिला को समाज किस नजर से देखता है 

हमारे समाज में विधवाओं को आज से नहीं बल्कि युगों- युगों से गलत नजर से देखा जाता है। उन्हें अपशकुन माना जाता है। ऐसा नियम आज से कई शताब्दी पहले पूर्वजों द्वारा बनाया गया था। जिसके अनुसार एक विधवा को भी अपने मृत पति के साथ जलाकर सती कर दिया जाता था।

जबकि उसके विधवा होने के पीछे उसका कोई कसूर नहीं होता था। लेकिन बिना कुछ चिंता किए ही, पहले के जमाने में एक विधवा औरत को उसके पति के शव के साथ ही जला दिया जाता था।

जैसे-जैसे समय बदलता गया। इन सब नियम में भी बदलाव आते चले गए। पुनर्विवाह शुरू हुआ। यदि कुछ नहीं बदला तो वह है समाज के लोगों की सोच। जो आज भी कहीं ना कहीं पुराने रूढ़िवादी प्रथा को मानती है।

जिसके अनुसार एक विधवा को हर वह काम करने के मनाही होती है। जो एक कुंवारी या सुहागन औरतें कर पाती हैं।

क्यों इस समाज द्वारा आज भी विधवाओं को गलत नजर से देखा जाता है एवं उन्हें बुरा कहा जाता है?

हमारे समाज विधवाओं को कोई पसंद नहीं करता है। इसका मुख्य कारण वह व्यक्ति होते हैं। जो धर्म को हथियार बनाकर लोगों के ऊपर वार करते हैं।

पति के मृत्यु के साथ ही एक विधवा औरत की मृत्यु हो जाती है

हमारे समाज में जितने भी नियम है। वह सब कुछ विधवा महिलाओं के लिए ही होता है। ना कि विदूर पुरुष के लिए।

समाज के दुर्व्यवहार के कारण ही एक विधवा औरत अपने पति की मृत्यु के दिन ही मर जाती है‌। यदि वह जीती है। तो अपने घर परिवार के लोगों के लिए।

अपने बच्चे के लिए। लेकिन उनकी आत्मा उनके पति की मृत्यु के दिन ही मर जाती है।

ताउम्र अकेले वक्त गुजारते है

अपने पति की मृत्यु के बाद एक विधवा औरत अपने जीवन में बहुत ज्यादा अकेली हो जाती हैं। ऐसे में जब उसे कोई भला बुरा कहता है। तो वह बिल्कुल टूट कर बिखर जाती है।

किसी भी सामाजिक कार्य को करने की मनाही होती है

यदि एक विधवा औरत का पति मर जाता है। तो उस औरत से किसी भी सामाजिक कार्य को करने का अधिकार भी छिन जाता है।

समाज एक कोने मे रखता है

विधवा महिला अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए भी किसी से ज्यादा मिलती जुलती नहीं है। तो भी उन्हें डांट फटकार लगाया जाता है कि तुम्हारी किस्मत बहुत खराब है। यदि तुम किसी के सामने आ जाओगी। तो उसकी भी किस्मत तुम्हारे कारण खराब हो जाएगी।

इसलिए महिलाओं को विधवा होने के बाद एक कमरे में रखा जाता था। ताकि वह बार-बार बाहर ना निकले और अपना अपशकुन चेहरा किसी को ना दिखाएं।

दूसरे विवाह के प्रस्ताव को नहीं मानते हैं

यह समाज विधवा के उस पल को भी उसे छिनने की पूरी कोशिश करता। जिस पल में वह फिर से जीवन की नई शुरुआत करने के सपने देखते हैं।

जबकि यह सामाज एक विधवा के पुनर्विवाह के खिलाफ होता है।

जो लोग वेद पढ़ते हो ना। उनको अच्छे से पता है कि वेदों में लिखा हुआ शब्द कभी गलत नहीं होता। वेद के अनुसार एक विधवा पुनर्विवाह कर सकती हैं।

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