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विधवा महिलाओं को समाज में ऐसे प्रताड़ित किया जाता है।

नारी को हर उम्र में कुछ ना कुछ सहना ही होता है। जन्म लेने के बाद पिता के घर में उसे बहुत सारे मर्यादा में रहने के लिए कहा जाता है। शादी के बाद ससुराल में उस पर पाबंदियां लगाई जाती है। अगर शादी के बाद उसके पति की मृत्यु हो जाती है। तो फिर उस नारी की जिंदगी बद से बदतर बन जाती है। तो वह जीते जी मर जाती है। विधवा महिलाओं को समाज में ऐसे प्रताड़ित किया जाता है। हमारे समाज में आज भी विधवा महिला को उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है।

ढेर सारी प्रताड़नाओं को सहती है विधवा


जब औरत का पति मर जाता है। तो कोई भी उसके अंदर के दर्द को नहीं समझता। बस सब उसे कोसने लग जाते हैं। उसे मनहूस करम जली इत्यादि नामों से पुकारा जाता है। कल तक जिसे बहू, बेटी या केवल उसके नाम से पुकारा जाता था। पति की मृत्यु के बाद उसे सिर्फ और सिर्फ विधवा कहकर बुलाया जाता है। जिस तरह से हर चीज के लिए हमारे भारत देश में कानून है। उसी तरह से विधवाओं के लिए भी एक कानून होना चाहिए कि उनके पति की मृत्यु के बाद यदि कोई भी उन्हें अपशब्द कहेगा। तो विधवाएं ऐसे लोगों पर केस कर सकती है।

विधवाओं को शुभ कार्यों से दूर रखा जाता है विधवाओं को


पति के मर जाने के बाद एक विधवा को हर शुभ कार्य से वंचित रखा जाता है। यदि वह शुभ कार्य में शामिल होना भी चाहती है। तो उन्हें कहा जाता है कि उनके शुभ कार्य में शामिल होने से वह काम बिगड़ सकता है। विधवा होना बुरा नहीं होता। विधवाओं को भी मनुष्य समझना चाहिए।उनको भी सुख पाने का अधिकार है। यदि विदुर पर किसी चीज का रोक-टोक नहीं होता। तो फिर विधावाओं पर भी किसी प्रकार का रोक-टोक नहीं होना चाहिए। गरीब विधवा को खुद के बच्चे भीख मांगने छोड़ देते है।

विधवा महिलाओं को समाज में ऐसे प्रताड़ित किया जाता है।


एक विधवा का जब पति चला जाता है। तो वह अपने बच्चों के लिए फिर से जीने का प्रयास करती है। लेकिन जब वही बच्चे उसे घर से बाहर निकाल देते हैं। तो उसकी परेशानियां ऐसी हो जाती है कि वह ना ही किसी से कह पाती है और ना ही सह पाती है। बच्चों को समझना चाहिए कि आज वह अपने मां-बाप के कारण दुनिया में आ पाएं हैं। मां-बाप के कठिन समय में हमेशा साथ रहना चाहिए। यदि आप अच्छा व्यवहार करेंगे तो वह दुआ देंगे। आपके बुरे व्यवहार से वह टूट जाएंगे।

विधवाओं को मजबूर किया जाता है


पति के मर जाने के बाद उसकी स्त्री को मजबूरन सादा खाना खाना पड़ता है। यहां तक कि उसे अपनी जुबान से मांस, मछली, अंडे आदि का भी नाम लेने की मनाही होती हैं। एक तरह से यदि कहां जाएं तो एक विधवा को अपनी इच्छा से कुछ भी करने की स्वीकृति नहीं होती। अपने हक के लिए समाज में विधवा को लड़ना होगा। जब तक वह अपने हक के लिए लड़ना नहीं सीखेंगे। तब तक उन्हें यह समाज कुछ भी नहीं देगा। एक विधवा अगर आवाज उठाएंगी तो देश की तमाम विधवाएं भी आवाज उठाएंगी। दुनिया में किसी भी व्यक्ति पर जोर जबरदस्ती से कोई नियम कानून थोप देना जायज नहीं है। जितना हम लोगों को खुश रखेंगे उतना हम स्वयं खुश होंगे। इसलिए किसी भी विधवा के साथ गलत ना करें। यदि कोई गलत कर रहा है तो उस गलत को रोके।

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