सुमन की कहानी | bedtime stories

सुमन की कहानी | bedtime stories मेरा नाम सुमन है। आज मेरी उम्र 30 है मगर; मै जो मेरा सीक्रेट आपसे शेअर करने जा रही हु, तब मै 20 साल की थी। वह ऐसा दौर था, छोटे गाँव में मोबाइल तो क्या टेलीफोनभी नहीं थे। मेरे माँ-बापबहुत ही गरीब थे। जीवन की कठिनाइयों ने; उन्हें इतना तोड़ दिया था, कि उन्होंने मेरी शादी एक ऐसे आदमी से कर दी, जिसकी उम्र मुझसे सोलह साल ज्यादा थी। ‘गंगाराम’, जिन्हें मैंने अपना पति स्वीकार किया, उनकी पत्नी गुजर गई थी; कोई औलाद नहीं थी, और पैसा बहुत था। इतना पैसा था, की मुझ जैसी बेचारी मजबूर लड़की को तो; वो आसानी से खरीद सकते थे। और उन्होंने खरीद ही लिया।

सुमन की कहानी | bedtime stories

गाँव के सरपंच; और बड़े बड़े लोग मेरी शादी गंगाराम से कराने के लिए; मेरे पिता पर दबाव डालने लगे। पापा को मेरी बहुत फिक्र थी। उन्होंने साफ साफ मना किया। तो साहूकार ने उसका कर्जा; 7 दिन में चुकाने की धमकी दी। वरना हमारा घर ;और खेती वो हड़पने ही वाले थे। अगर मेरी शादी उससे करा दी जाए, तो साहूकार अपना सारा कर्ज, ब्याज सहित, माफ करनेवाला । सरपंच ने हमारे लिए नया मकान बनवाने का लालच दिया। पापा का मन नहीं मान रहा था। मगर मजबूरी ये थी कि कर्ज चुकाने के लिए पैसे नहीं थे।

जबरदस्ती शादी

पापा की बढ़ती चिंता ने मुझे चिंतित कर दिया। उनको ये लोग तंग न करें, इसलिए मैंने ही शादी के लिए हां कर दी।
एक लाचार बाप; अपनी आँखों के सामने अपनी मजबूरी को; आँसुओं से भिगो रहा था। आखिर धनवान ने खूबसूरती खरीद ही।
मेरे पिताजी की जिंदगी में पहले से ही कई उथल-पुथल थीं, और अब मेरे कारण भी तकलीफ बढ़ रही थी। आखिरकार, शादी हो गई। साहूकार , सरपंच ने blackmail करके मेरी जबरदस्ती शादी कराई। और फिर ..

शादी के बाद, हम शहर में खुद के घर में रहने लगे। सास ससुर गाँव में रहते थे। देवर जमीन जायदाद संभालते थे। शहर में हमारे पड़ोस में पति का मौसेरा भाई; दीपक अपने माँ बाप के साथ रहता था। इस एक परिवार के सिवा; मेरी पहचान का इस
शहर में कोई भी नहीं था। गंगाराम दिन भर नौकरी पर रहते; और मैं घर में अकेली। गाँव से आई एक चुलबुली लड़की से; मैं जिम्मेदार औरत बन गई थी। दिन भर की चुप्पी मेरे लिए असहनीय हो जाती।

एक दिन, जब मैं अपने आँगन में बैठी चिड़ियों को दाना डाल रही थी, तभी पड़ोस में रहने वाले गंगाराम के मौसेरे भाई दीपक ने मुझे देखा। वह एक कॉलेज का लड़का था, जिसकी आँखों में नई उम्मीदें और सपने बसे हुए थे। उसने मेरी मदद करने की पेशकश की, और धीरे-धीरे वह मेरे घर के कामों में; हाथ बँटाने लगा। मैंने कई बार महसूस किया कि; दीपक मुझे अलग नजरों से देखता है, जैसे कि मैं उसके लिए कोई अनसुलझी पहेली हूँ।

अकेलेपन का एहसास

उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जब भी वह मुझसे बात करता मै रोमांचित हो उठती थी। मैं जानती थी कि यह सब गलत है, लेकिन कहीं न कहीं मेरे दिल में भी; एक अजीब सी खुशी होती; जब वह मेरे आस-पास होता। घर के सामने मेरे छोटे से बगीचे में; दीपक से मेरी पहली मुलाकात बहुत ही संयोगिक थी। वह दिन था; जब मैंने अपने हाथों से नए फूलों के पौधे लगाए थे।
दीपक ने मुझे देखा और मुस्कुराते हुए पूछा, “ये फूल आपके बगीचे को बहुत सुंदर बना देंगे, है ना?”

मैंने जवाब दिया, “हाँ, मुझे फूलों से बहुत प्यार है। वे मुझे मेरे गाँव की याद दिलाते हैं।”

दीपक ने कहा, “मैंने सुना है कि गाँव की जिंदगी; बहुत ही सुंदर होती है। आपको वहाँ की क्या चीज सबसे ज्यादा याद आती है?”

मैंने उत्तर दिया, “मुझे अपने गाँव की सुबहें; बहुत याद आती हैं, जब सभी चिड़ियाँ चहचहाती थीं; और पूरा गाँव जाग उठता था।”
फिर दीपक ने अपने बारे में कुछ बताया, कुछ हंसि-मजाक भरी बाते की, और चला गया।

उसके बाद से, दीपक अक्सर मेरे बगीचे में आने लगा। हम दोनों में बहुत सी बातें होती थीं – कभी गाँव की यादें, कभी शहर की जिंदगी, तो कभी हमारे सपने और आकांक्षाएँ। दीपक की बातों में एक ताजगी थी, और आँखों में अपनेपन की झलक; जो मुझे रोमांचित कर देती थी।

दीपक से दोस्ती

जब भी वह मेरे साथ होता, मेरा दिल; एक अजीब सी खुशी से भर जाता। उसकी आँखों में एक चमक थी, जो मुझे बताती थी कि; वह मेरी तरफ आकर्षित है। यह भी सच है कि; मैं भी उसकी ओर खिंची चली जा रही थी। एक दिन, जब हम दोनों बगीचे में बैठे थे, दीपक ने कहा, “सुमन, आपकी हंसी में एक संगीत है, जो मेरे दिल को छू जाता है।” मैंने शर्माते हुए कहा, “दीपक, आपकी
बातें भी मेरे दिल को बहुत भाती हैं।”


दीपक ने मेरी आँखों में आंखे डालकर देखा। मेरे पूरे शरीर में एक लहर सी दौड़ गई। पूरा शरीर रोमांचित हो उठा। तभी उसको किसी ने आवाज दी। और वह चला गया। उस पल में, मैंने महसूस किया कि दीपक के साथ, मेरा रिश्ता सिर्फ दोस्ती से कुछ ज्यादा हो गया था। वह रोमांच और उत्साह, जो मैंने उसके साथ महसूस किया, वह मेरे लिए नया था, और मैं उसे अपने जीवन में संजोना चाहती थी।

एक नई दुनिया मेरे सामने खुल रही थी, जिसमें दीपक मेरे लिए; एक नई उम्मीद बनकर आया था। कभी कभी वह सब्जी लाकर देता था। उस बहाने उसकी उँगलियाँ मेरे उंगलियों को स्पर्श करती थी। मेरे पूरे शरीर में , एक नई ऊर्जा का संचार करती थी।
मै सोचती थी की जीवन सुंदर है। ये जीवन सचमुच सुंदर है।

बच्चे की कमी

इस तरह से मेरी जिंदगी के दिन गुजरने लगे। मेरी शादी को अब 5 साल हो चुके थे। मेरे माँ पापा और सांस ससुर को भी, पोते का इंतजार था। मगर हमने पिछले 4 साल से, सब डॉक्टर कीये। दुनियाभर की दवाई खाई, टेस्ट कराए। मगर कुछ फायदा नहीं आ। डॉक्टर के अनुसार, हम दोनों शारीरिक दृष्टि से सक्षम थे। आयुर्वेदिक ईलाज भी कीये मगर सबकुछ बेअसर।

दीपक अक्सर मुझसे मिलने की कोशिश करता था, खासकर जब गंगाराम घर पर नहीं होते थे। वह बहाने बनाकर मेरे पास आता, कभी कहता कि उसे, मेरी मदद की जरूरत है, तो कभी कहता कि, उसे मेरी सलाह चाहिए। उसकी आँखों में एक चमक होती थी, जब भी वह मुझसे बात करता। कभी कभी किसी बहाने उसका हल्का सा स्पर्श भी, दिनभर का आनंद देता था।

जहाँ तक मुझे पता है, दीपक की कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी। वह हमेशा मेरे बारे में ही पूछता; और मेरी तारीफ करता रहता।
उसकी बातों में एक सच्चाई; और गर्मजोशी होती थी, जो मुझे बताती थी कि; वह सिर्फ मेरे लिए ही ऐसा महसूस करता है। दीपक मेरी मदद कई तरीकों से करता था।

वह घर के कामों में हाथ बँटाता, बाजार से सामान लाने में मेरी मदद करता, और कभी-कभी; खाना भी बना देता। उसकी मदद से मेरा दिन थोड़ा हल्का हो जाता था, और मैं उसकी कंपनी का आनंद लेती थी। उसके साथ जितना मै सुखद अनुभव करती थी, उतना मेरे पति गंगाराम के साथ कभी महसूस नहीं हुआ।

जिंदगी में उम्मीद

उसकी उपस्थिति मेरे लिए एक सुखद अनुभव थी। जब भी वह मेरे आस-पास होता, मैं खुद को जीवंत महसूस करती। उसके साथ बिताए गए पल मेरे लिए बहुत कीमती थे, और मैं हमेशा उन पलों को याद करके; मन ही मन मुस्कुरा देती। उसकी सादगी और देखभाल ने मेरे दिल में एक खास जगह बना ली थी। मै भी उसके लिए; नए नए पक्वान्न बनाती थी। वह कहता तो मै; खुद उसको खिलाती मगर कभी वह बोला ही नहीं।

जैसा कि मैंने पहले बताया, मेरी और दीपक की दोस्ती; धीरे-धीरे गहरी होती जा रही थी। गंगाराम के ऑफिस जाने के बाद, दीपक अक्सर मेरे घर आ जाया करता था। वह मेरे साथ बैठकर चाय पीता, और हम दोनों घंटों बातें करते। उसकी बातों में एक अलग ही ताजगी थी, जो मेरे जीवन में; नई उम्मीदें जगा रही थी।

बाबाजी का प्रसाद

कभी कभी वह; मेरे बाल हाथ में लेता था, और कहता था, की “भाभी आपके बाल कितने मुलायम और सुंदर है। वैसे आप स्वर्ग की अप्सरा से; जरा भी कम नहीं हो। हमारे भाई नसीबवाले है, जो तुम जैसी पत्नी मिली।” एक दिन, जब गंगाराम ऑफिस
के काम से; शहर से बाहर गए हुए थे, दीपक ने मुझे एक बाबाजी के बारे में बताया। उसने कहा, “सुमन भाभी, मैंने सुना है कि बाबाजी के आशीर्वाद से कई औरतों की गोद भरी है।

शायद आपको भी उनका आशीर्वाद मिल जाए।” मैंने उत्सुकता से पूछा, “सच में? लेकिन गंगाराम को तो इन सब बातों पर यकीन नहीं है।” दीपक ने धीरे से कहा, “गंगाराम भैय्या को पता नहीं चलेगा। हम चुपके से जा सकते हैं।” मैंने एक पल के लिए सोचा, और फिर हामी भर दी।

उस दोपहर, हम दोनों बाबाजी के पास जाने का निर्णय ले चुके थे। शाम को खाना खाते वक्त, मैंने बाबाजी के बारे में पति को बोला। मैंने सोचा था, की वो मना करेंगे, मगर उन्होंने बोला की, “मैंने भी उनके बारे में सुना है। एक बार जाकर आते है। क्या पता, कब कौन भगवान बनकर हमें आशीर्वाद दें”। आखिर उनको भी तो बच्चे की चाहत थी। दूसरे दिन हम बाबाजी से आशीर्वाद लेकर भी आए। ऐसे ही कुछ दिन बित गए।

पिता का खत

एक दिन सुबह, गंगाराम ने मुझे बताया कि, उन्हें कल ही ऑफिस के बहुत जरूरी काम से एक हफ्ते के लिए, बाहर जाना पड़
रहा है। यह सुनकर मुझे थोड़ी निराशा हुई, लेकिन मैंने उन्हें समझा और कहा, “ठीक है, जल्दी वापस आ जाना।” उन्होंने मुझे आश्वस्त किया, “चिंता मत करो, मैं जल्दी ही वापस आ जाऊंगा।

लेकिन उसी दिन; मेरे पिता का खत आया। खत पढ़कर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। पिताजी बहुत बीमार थे, और उन्हें मेरी तुरंत जरूरत थी। शाम को जब पति घर लौट आए। मैंने उन्हें सारी बात बताई; और रोने लगी। उन्होंने मुझे समझाया और कहा,
“चिंता मत करो, सुमन। हम मिलकर रास्ता निकाल लेंगे।” मुझे बहुत हौसला दिया।

उसने कहा, “डरो मत सुमन। मैं तुम्हारे साथ हूँ। हम मिलकर पापा का ख्याल रखेंगे; कल तुम दीपक के साथ मायके चली जाना। और जैसे ही मैं दूसरे शहर से लौटूंगा, मैं सीधे तुम्हारे मायके आऊंगा।” कुछ देर बाद, गंगाराम ने दीपक को बुलाकर; उसे सारी बात बताई। उन्होंने दीपक से कहा, “सुमन के पिता बीमार हैं, और उन्हें उसकी जरूरत है। क्या तुम मेरी कार लेकर सुमन को मायके छोड़ने जाओगे?” दीपक ने बिना किसी हिचकिचाहट के, मेरी मदद करने का वादा किया।

मेरे पति ने खुशी से कहा, “धन्यवाद दीपक। तुम बहुत अच्छे हो।” फिर उन्होंने मुझे कहा, “सुमन, मैंने दीपक को सब कुछ बता
दिया है। वो तुम्हें मायके छोड़ने में मदद करेगा। मैं एक हफ्ते बाद वापस आऊंगा।” मै पापा की बीमारी की खबर सुनकर; दुखी तो बहुत थी, मगर दीपक के साथ जाने की खुशी भी थी।

सुहाना सफर

अगले दिन मैं और दीपक; हमारी कार में बैठकर मायके के लिए रवाना हो गई। बारिश हो रही थी। कार की खिड़की से पानी की बूंदें बह रही थीं। हवा तेज थी और पेड़ों की शाखाएं हिल रही थीं। लेकिन मेरे मन में कोई डर नहीं था। दीपक मेरे साथ था,
और मुझे पता था कि मैं सुरक्षित हूँ। दीपक और मैं, दोनों ही एक दूसरे के लिए, प्यार का एहसास रखते थे, पर किसी ने भी, अपने दिल की बात; खुलकर नहीं कही थी।

उस दिन हम दोनों कार में थे, और हवा में एक अजीब सी मिठास थी। शायद ये मौसम था, शायद ये सड़कें थीं, या शायद ये सिर्फ हम दो ही थे। हर पल, हर नज़र, हर बात में; एक अनोखा सा एहसास था। हंसी थोड़ी ज़्यादा थी, बातें थोड़ी गहरी थीं, और खामोशी भी थोड़ी नयी थी। हम दोनों ही जानते थे; कि कुछ बदल रहा है, पर क्या, ये किसी को नहीं पता था।

शायद ये वो ही लम्हे थे, जिनका इंतज़ार हम दोनों ही कर रहे थे। शायद ये वो ही पल थे, जब हम दोनों; एक दूसरे के करीब आ रहे थे। और शायद ये वो ही एहसास था, जिसे हम प्यार कहते हैं। अचानक, काले बादलों ने आसमान को ढक लिया; और बारिश शुरू हो गई। पहले तो बूंदें हल्की थीं, लेकिन धीरे-धीरे वो मूसलाधार हो गईं। हमारी गाड़ी धीमी रफ्तार से चल रही थी। थोड़ी ही देर बाद, हमें पता चला कि आगे सड़क बह रही है। नदी का पानी उफनकर सड़क पर आ गया था। अब आगे जाना मुश्किल हो गया था।

हमने एक किनारे गाड़ी रोक दी एक घंटा हो गया, दो घंटे बीत गए। शाम हो गई। कार में बैठे-बैठे, मेरे दिल की धड़कनें तेज हो
रही थीं। मैं जानती थी कि; दीपक भी मेरे साथ है, और मेरे अंदर; एक अजीब सी खुशी थी। हवा में प्यार का रोमांच था, और मैं बस; दीपक को देखे जा रही थी। उसकी आँखें मेरी आँखों में कैद थीं, और मुझे ऐसा लग रहा था; जैसे दुनिया सिर्फ हम दोनों तक ही सिमट कर रह गई थी।

तूफ़ानी बारिश

कार के अंदर, हवा में प्रेम की सुगंध थी। मेरा हृदय; एक बेकाबू पंछी की तरह धड़कने लगा। उनकी सांसों की गरम हवा; मेरे चेहरे को छू रही थी, और उनका स्पर्श; मेरे तन को अलग ही करंट से भर रहा था। हमारी नज़रें मिलीं, और उस क्षण, सारी दुनिया गायब हो गई। केवल हम दो ही अस्तित्व में थे, दो आत्माएं जो एक दूसरे में खोई हुई थीं। मेरा दिल धड़कने लगा, मानो कोई ढोल बज रहा हो। और करंट दौड़ गया पूरे तन में।

उसकी आंखों में देखते ही, मैं पिघल गई, जैसे कोई आइसक्रीम धूप में। उनकी सांसों की गरम हवा; मेरे चेहरे को छू रही थी, और मैं बस उनमें खो गई थी। मगर मैंने अपने आप को संभाला,मै जानती थी, की ये सब गलत है। अब मै खुद को नहीं रोकूँगी, तो जिंदगीभर पछताना पड़ेगा। फिर भी मुझे उसका साथ अच्छा लगता था। कुछ देर में बारिश रुक चुकी थी, और मौसम सुहावना था। हमने अपनी यात्रा फिर से शुरू की। कुछ घंटों बाद, हम मेरे मायके पहुंच गए।

मेरे पिताजी दरवाजे पर खड़े थे। उन्हें देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। मैंने पिताजी को गले लगाया ;और कहा, “पापा, मैं आ गई हूं।” उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया ;और कहा, “बेटा, तू आ गई तो घर फिर से रोशन हो गया।” मैंने दीपक को देखा; और मुस्कुराई। मुझे पता था कि मेरे जीवन में ; एक नया अध्याय शुरू हो गया है। दीपक चला गया था, और मैं अपने पिताजी के साथ रह गई थी। मैंने अपने पिताजी की बीमारी की गंभीरता को महसूस किया। उनकी आँखों में वही प्यार था, जो हमेशा से था, लेकिन उनकी शक्ति कम हो रही थी।

मैंने उनके साथ; अपने बचपन की यादों को ताजा किया, और उनके चेहरे पर; मुस्कान लाने की कोशिश की। मैंने अपने आप को संभाला; और अपने पिताजी की देखभाल में लग गई। एक दिन; जब मैंने अपने पिताजी के हाथों में अपना हाथ रखा, तो उन्होंने मुझसे कहा, “सुमन, मैंने तुम्हारे साथ अन्याय किया है। मगर तू हमेशा मेरी ताकत रही है। मैं चाहता हूँ कि तू अपनी जिंदगी में हमेशा खुश रहे।” “मेरे जीते-जी पोते का मुह देखता; तो सुकून से भगवान के पास जाता।” बोलते बोलते उनकी आंखे भर आयी ।

पापा से बातचीत

उनकी ये बातें मेरे दिल को छू गईं। मैंने बोला, “ऐसा मत सोचो पापा। मेरे पति बहुत अच्छे है। और मै इस वक्त दुनिया की सबसे
नसीबवाली औरत हु। ढेर सारी जायदाद, देवता जैसे मां-बाप, एक प्यार करनेवाला पति, बालबच्चे भी हो जायेंगे। एक नए डॉक्टर ने हमें इस बार guarrenty दी है पापा”। मैंने उन्हे दिलासा देने के लिए झूठ बोल दिया। “जल्द ही आप दादा बननेवाले हो। आप मेरी फिक्र बिल्कुल न करें।” उनके कान शायद; यहीं सुनने को तरस रहें थे। मैंने उनके चेहरे पर अजीब सी खुशी महसूस की।…

कुछ दिनों में,मेरे पिताजी की तबीयत और भी बिगड़ गई, और वह इस दुनिया से चले गए। उस दुःख की घड़ी में, मेरे पति गंगाराम; मेरे साथ डटकर खड़े रहे। उनके जाने का सदमा मुझे बहुत गहरा लगा, लेकिन उनकी आखिरी इच्छा मेरे दिमाग में कड़कड़ाती बिजली की तरह गूंज रही थी। उनके होते हुए पोते का मुंह नहीं दिखा सकी, इसलिए मुझे बहुत गिल्टी फिल हो रहा था।

जिंदगी में खालीपन

आज पापा गए, शायद मै भी ऐसी ही अधूरी इच्छा के साथ मर जाऊँगी। शायद मेरे पति भी। मेरे दिमाग की नसे फटे जा रही थी। आँख में आँसू के कारण कुछ दिख नहीं रहा था। मन में बहुत बुरे बुरे खयाल आ रहे थे। मगर मेरे पति ने मेरी हालत समझते हुए;मुझे खुश रखने की हर संभव कोशिश की। मेरी खुशी के आगे; उनके लिए कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं था।

कुछ दिनों में हम वापस शहर लौटे। 2-4 दिन से दीपक घर नहीं आया तो मैंने पति को पूछा। उन्होंने बताया की, उसका कॅम्पस
सिलेक्शन हो गया है; और वह अमरीका चला गया है। कुछ दिन ऐसे ही गुजरे। पिताजी के जाने का दुख मुझे बहुत था। इस दुखभरी घड़ी में मेरे पति गंगाराम ने मेरा बहुत साथ दिया।

पति से प्यार

उनके साथ मेरा रिश्ता भले ही प्रेम से नहीं जुड़ा था, लेकिन सम्मान और सहयोग से जरूर था। उनके साथ और सहयोग से मै
दीपक को भी भूल रही थी। और फिर एक दिन, मैंने खुद को प्रेग्नन्ट पाया। preganews से चेक किया। दो लाइने दिख रही थी। यह खबर सुनकर गंगाराम बहुत खुश हुए। मैंने दीपक को एक खत लिखा, जिसमें मैंने अपनी प्रेग्नेंसी की खबर दी। मैंने उसे बताया कि मेरे पति; और मैं दोनों ही बहुत खुश हैं। उस खत के साथ, मैंने अपने और दीपक के बीच के अध्याय को; हमेशा के लिए बंद कर दिया।

सूचना: ये कहानी, पात्र, घटना, सब काल्पनिक है। इसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं। अगर पाया जाये , तो केवल संयोग समझे।

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