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नापसंद पति से छुटकारा : मेरी आपबीती

मेरी कहानी शुरू होती है उस दिन से, जब मेरे माता-पिता ने मेरी शादी एक साधारण से लड़के, अरुण, से तय कर दी। मैं उस समय बहुत नाराज थी क्योंकि मेरा दिल तो किसी और के लिए धड़कता था। मेरा प्रेमी, राहुल, मेरे कॉलेज का साथी था और हम दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। लेकिन मेरे माता-पिता को यह रिश्ता मंजूर नहीं था। उनका मानना था कि अरुण जैसा साधारण, मेहनती और ईमानदार लड़का ही मेरे लिए सही होगा। मैंने बहुत विरोध किया, लेकिन आखिरकार मेरी शादी अरुण से ही हो गई।

शादी की पहली रात जब वो दूध लेकर आया, मैंने उससे पूछा, “एक पत्नी की मर्जी के बिना पति उसे छूए तो उसे बलात्कार कहते हैं या हक?” उसने बस इतना कहा, “आपको इतनी गहराई में जाने की जरूरत नहीं है। मैं सिर्फ शुभ रात्रि कहने आया हूँ,” और कमरे से बाहर चला गया। मैं सोच रही थी कि झगड़ा हो जाए ताकि मैं इस अनचाहे रिश्ते से छुटकारा पा सकूं, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

अरुण के घर में सिर्फ उसकी माँ, सुशीला देवी, थीं। वे बहुत ही सरल और प्यार भरी महिला थीं। शादी में अरुण को बहुत सारे उपहार और पैसे मिले थे, लेकिन मेरा दिल तो राहुल के पास ही था। मैं अपने ससुराल में रहते हुए भी मन से वहाँ नहीं थी। मैं दिनभर ऑनलाइन रहती और राहुल से बातें करती। अरुण और उसकी माँ ने मेरे इस व्यवहार पर कभी कोई शिकायत नहीं की। सुशीला देवी घर का सारा काम खुद करतीं और हमेशा मुस्कुराती रहतीं। अरुण एक छोटी सी कंपनी में काम करता था, बहुत मेहनती और ईमानदार। हमारी शादी को एक महीना हो चुका था, लेकिन हम पति-पत्नी की तरह कभी साथ नहीं रहे थे।

एक दिन, मैंने सुशीला देवी के बनाए खाने को बुरा-भला कहकर फेंक दिया। यह देखकर अरुण ने पहली बार मुझ पर आवाज उठाई। मैंने इस बात को बहुत बड़ा बना दिया और घर से निकलकर राहुल से मिलने चली गई। राहुल ने मुझसे कहा, “कब तक यहाँ रहोगी? चलो, भाग चलते हैं कहीं दूर।” राहुल के पास न तो कोई स्थिर नौकरी है और न ही कोई योजना। मैंने महसूस किया कि वह खाली हाथ भागने को तैयार नहीं था। मैं उलझन में थी कि क्या करूँ।

फिर एक दिन, मैंने अरुण की अलमारी खोली। उसमें मेरा बैंक पासबुक, एटीएम कार्ड, और वो सारे गहने थे, जो मेरे घरवालों ने मुझसे छीन लिए थे। मुझे ये सब देखकर झटका लगा। साथ ही, उसकी डायरी में मेरे लिए एक खत रखा था। उसमें लिखा था कि उसने मेरी हर चीज को संजोकर रखा था, और दहेज में मिले सारे पैसे मेरे अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए थे। उसने लिखा कि वो मुझे प्यार से इस रिश्ते में बाँधना चाहता है, न कि जबरदस्ती।

उसकी इन बातों ने मेरे दिल को छू लिया। मैंने सोचा भी नहीं था कि ये “गंवार” मुझे इस तरह से समझ सकता है, बिना कुछ कहे। धीरे-धीरे, मुझे एहसास हुआ कि वो मुझे उसी सादगी से प्यार करता है, जिस सादगी से उसने मुझे अपनी जिंदगी में जगह दी थी।

अगली सुबह, मैंने सिंदूर गाढ़ा करके अपनी माँग में भरा और अपने पति के ऑफिस चली गई। उस दिन, मुझे समझ आया कि जिन फैसलों को मैं गलत मानती थी, वही मेरे लिए सबसे सही थे। मेरे माँ-बाप ने मेरे लिए जो भी किया, वो सिर्फ मेरे भले के लिए था। आज मैं अरुण और सुशीला देवी के साथ बहुत खुश हूँ। मैंने सीखा कि प्यार और विश्वास से बना रिश्ता किसी भी प्रेम विवाह से बेहतर होता है।

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