मेरी कहानी : शादी मेरे लिए सिर्फ एक जेल

हर लड़की अपने मां बाप के घर अपने तरीके से जीती है और शादी के बाद बहुत कुछ बदलता है।लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि यह बदलाव सिर्फ एक लड़की पर थोपा जाता है।मेरी जिंदगी भी शादी के बाद बदल गई ऐसे…..

मैं शहर के एक अच्छे कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुएशन कर चुकी हूं।पढ़ाई में शुरू से ही अच्छी होने के कारण माता-पिता ने बहुत सम्मान के साथ पाला है।मेरी हर इच्छा को पूरा करना और जीने की पूरी आजादी भी माता-पिता से हमेशा मिली।मेरे कहने का मतलब कि मुझ पर किसी तरह की बंदिशें नहीं थी।

जो चाहे पहनना और जो जी चाहे वही खाना, शादी से पहले मेरी जिंदगी कुछ ऐसी ही थी।मेरे पिता ने मेरे लिए एक अच्छा लड़का देखा और रिश्ता पक्का कर दिया।कुछ महीनों बाद मेरी शादी भी हो गई और मैं अपने ससुराल चली गई।लेकिन जिस तरह से मैंने पहले अपनी जिंदगी देखी थी, शादी के बाद ऐसा कुछ भी नहीं था, मेरा मतलब कि हर चीज पर बंदिश।

माना कि शादी के बाद बहुत सी जिम्मेदारियां आ जाती है और उनका पालन करना भी जरूरी होता है।लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि किसी इंसान की खुशियों का गला घोंट दिया जाए।यहां तक की मुझे अपनी मर्जी से सलवार सूट पहने तक का अधिकार नहीं मिला।एक पढ़ी-लिखी लड़की को परंपरा के नाम पर घूंघट में लपेट कर रख दिया।

मैं अपनी मर्जी से या भूख लगने पर खाना तक नहीं खा सकती।क्योंकि मेरे ससुराल में मर्दों के खाना खाने से पहले तो औरत को अपनी भूख मिटाने का हक नहीं है।मैंने इस परंपरा के खिलाफ अपनी आवाज उठाई क्योंकि पढ़ी लिखी होकर भी मैं यह सब सहन नहीं कर सकती थी।लेकिन बदले में मुझे मिला क्या सिर्फ मारपीट और परिवार के किसी भी सदस्य ने मेरी बात तक नहीं सुनी।

यहां तक कि मेरे पति ने भी परंपराओं का हवाला देते हुए मुझे यह सब कुछ मानने पर मजबूर किया।इसके अलावा, मैं घर के आंगन से बाहर तक नहीं निकल सकती।ना ही मुझे आस-पड़ोस की किसी महिला तक से मिलने दिया जाता है।इन सब बंदिशों का कारण पूछने पर हमेशा परंपरा के नाम पर हुक्म थोप दिया जाता है।

आखिर मैं कर भी क्या सकती हूं, इसलिए चुपचाप सब कुछ सहन कर लेती हु।एक पढ़ी-लिखी और हमेशा अपनी मस्ती में रहने वाली लड़की अब हर समय उदास रहती है।जब एक अच्छी नौकरी ढूंढने का समय आया तो पिताजी ने शादी कर दी।फिर लगा कि पति ही सपनों को पूरा करेगा लेकिन पति ने तो मेरे पैरों में बेड़ियां ही बांध कर रख दी।

कभी जिम्मेवारी तो कभी परंपरा और रीति-रिवाज के नाम पर, हर पल मेरी ख्वाहिशों को दफन किया जा रहा है।क्या शादी का मतलब सिर्फ गुलामी या बंदिश ही होता है? एक लड़की को शादी के बाद खुद के बारे में सोचने का कोई अधिकार नहीं?कैसी जिंदगी है यह और कब तक यूं ही चलता रहेगा? ऐसे ही ढेरों सवाल मेरे मन में उठते हैं, जिनका कोई भी जवाब आज तक मुझे नहीं मिला।

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