कहानी: सच्चा वारिस
एक सुदूर गांव में, एक आदमी का देहांत हो गया। गांव वाले उसे अंतिम विदाई देने के लिए एकजुट हुए। श्मशान की ओर बढ़ते हुए, अचानक एक आदमी आगे आया और अर्थी का एक पाँव पकड़ लिया। उसने जोर से घोषणा की,
“रुको! मरने वाले से मेरे पंद्रह लाख रुपये लेने हैं। जब तक मुझे पैसे नहीं मिलते, मैं अर्थी को नहीं जाने दूंगा!”
गांव वाले हैरान रह गए। मृतक के बेटे ने जोर से कहा, “पिताजी ने कभी भी किसी से इतना बड़ा कर्ज लिया होने की बात नहीं बताई थी। हम पैसे देने में असमर्थ हैं।” मृतक के भाई ने भी हाथ खड़े कर दिए।
विवाद बढ़ता गया और लोग मृतक के घर की ओर दौड़ पड़े। मृतक की एकलौती बेटी ने यह सब सुनकर अपना सारा सोना और नकद पैसा जमा किया और उस आदमी के पास भेजा। उसने कहा, “कृपया, मेरे पिताजी की अंतिम यात्रा में बाधा न डालें। मैं यह कर्ज जरूर चुका दूंगी।”
तब वह आदमी आगे आया और सभी से कहा, “सच तो यह है कि मैंने कभी मृतक से कोई पैसे नहीं लिए थे। उल्टा मैंने ही 30 साल पहले उनके 15 लाख लिए हुए थे। वहीं मै ब्याज सहित वापस करने के लिए आया था। लेकिन मुझे नहीं पता था की उनका असली वारिस कौन है। अगर मै उनके लड़कों को देता, तो सब एकदूसरे से झगड़ते।
मैंने यह सब इसलिए किया था ताकि मैं उसके सच्चे वारिस का पता लगा सकूं। मुझे पता था कि अगर मैं ऐसा करूंगा तो सच्चा वारिस सामने आएगा। अब मुझे पता चल गया है कि उसकी एकलौती बेटी है और उसका कोई बेटा या भाई नहीं है।” ऐसा कहकर सारे पैसे उसने बेटी को दिए।
गांव वाले उस आदमी की चतुराई पर हैरान रह गए। उन्होंने उसकी ईमानदारी की भी प्रशंसा की। अंततः, मृतक का अंतिम संस्कार शांतिपूर्वक संपन्न हुआ।