वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि को ही मनाया जाता है। क्या आप लोग जानते हैं कि आखिर क्यों यह व्रत किया जाता है। शायद आप में से बहुत सारे लोग यह भी सोचते होंगे या यह प्रश्न आप के मन में उत्पन्न होता होगा कि वट सावित्री का व्रत, अविवाहित महिलाएं रख सकती हैं या नहीं।
कैसे की जाती है वट सावित्री की पूजा?
करवा चौथ के व्रत की तरह ही वट सावित्री का व्रत मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है। यह व्रत हर वर्ष ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि को होता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा की रहने वाली सभी महिलाएं एक दिन का उपवास रखती हैं और सावित्री को श्रद्धांजलि देती हैं।
जो अपने मृत पति सत्यवान के जीवन को यमराज से छिनककर ले आई थी। इस शुभ दिन पर वट या बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है और महिलाएं इसके नीचे बैठकर व्रत कथा पढ़ती हैं।
आखिर वट सावित्री के दिन बरगद के पेड़ की पूजा क्यों की जाती हैं?
बहुत सारी महिलाएं जो इस पूजा के विषय में कुछ नहीं जानती हैं। वह हमेशा सोचती हैं कि वट सावित्री के दिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा क्यों करती हैं। साथ ही बहुत सारे पुरुषों का भी यही सवाल होता है कि आखिर क्यों महिलाएं वट सावित्री के दिन बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। इस विषय पर भी हम आपसे चर्चा करेंगे और आपको बताएंगे कि आखिर क्यों बरगद के पेड़ की पूजा करके ही महिलाएं अपने व्रत की पूजा को संपूर्ण मानती हैं।
ऐसा कहा जाता है कि सावित्री राजर्षि अश्वपति की पुत्री थी। जिसका विवाह सत्यवान के साथ हुआ था। सत्यवान वन राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे। नारदजी ने उन्हें इस बात की जानकारी दी थी कि सत्यवान का जीवन आयु बहुत छोटा है। ऐसे में सत्यवान का विवाह होना असंभव है। कारण कोई भी लड़की अल्प आयु में विधवा नहीं होना चाहेगी। इन सभी बातों को जानने के बावजूद भी सावित्री ने अपना फैसला नहीं बदला। सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह किया और अपने परिवार की सेवा करने के लिए वह जंगल में रहने लगी।
एक दिन सत्यवान लकड़ियाँ काटने जंगल में गया था, वह वहीं पर गिर पड़ा। यह देखकर यमराज सत्यवान की जान लेने पहुंच गए। सावित्री सब कुछ जानती थी क्योंकि वह तीन दिन का उपवास कर रही थी। उसने यमराज से सत्यवान की जान ना लेने का अनुरोध किया लेकिन यमराज कहां मानने वाले थे।
वहीं सावित्री भी कहा हार मानने वाली थी। वह भी यमराज का पीछा करने लगी। यमराज के कई बार मना करने के बाद भी सावित्री पीछे हटने को तैयार नहीं हुई। सावित्री के बलिदान से प्रसन्न होकर यमराज ने कहा कि वह उनसे 3 वरदान मांग सकती हैं। सावित्री ने पहले वरदान के लिए सत्यवान के अंधे माता-पिता के लिए आंखों की रोशनी मांग लिया।
दूसरे वरदान में, सावित्री ने सत्यवान के अंधे माता-पिता का छीना हुआ राज्य मांगा। अंतिम वरदान के लिए, सावित्री ने यमराज से उसे 100 पुत्रों का आशीर्वाद देने के लिए कहा। यमराज ने उसके तीन वरदान को पूरा किया। वरदान को स्वीकार करने के बाद यमराज को यह महसूस हुआ कि अब सत्यवान को अपने साथ ले जाना संभव ही नहीं है।
यमराज ने सावित्री को अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद दिया। वहीं सत्यवान को जीवित करके यमराज की जान चली गई। जब ऐसा हुआ उस वक्त सावित्री किसी बरगद के पेड़ के नीचे ही सत्यवान के साथ बैठी थी। इसलिए इस दिन को महिलाएं बरगद के पेड़ के चारों ओर घूमकर एक धागा लपेटती हैं और पूजा-अर्चना करती हैं। इसलिए बरगद के पेड़ की पूजा किए बिना यह व्रत वास्तव में पूर्ण नहीं माना जाता है।
यदि आप विवाहित हैं और वट सावित्री का व्रत कर रही हैं, तो कुछ गलतियों को करने से बचें-
व्रत के दौरान महिलाओं को काले, नीले और सफेद रंगों के प्रयोग से बचना चाहिए। इनके इस्तेमाल से आप व्रत के शुभ लाभ को प्राप्त करने में असमर्थ रह सकती है। कारण इन सभी रंगों को किसी विवाहित महिला की निशानी के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता हैं।
Vat Savitri Vrat 2022: वट सावित्री पूजा वाले दिन क्यों होती है बरगद की पूजा
वट सावित्री व्रत के दौरान, बेहतर परिणाम प्राप्त करने में असफल हुए बिना सभी प्रार्थनाओं को धार्मिक रूप से करने की जरूरत होती है।
विवाहित हिंदू महिलाओं द्वारा मनाए जाने वाले विभिन्न व्रतों में वट सावित्री व्रत का विशेष उल्लेख मिलता है। जैसा कि नाम से पता चलता है, यह व्रत सावित्री को समर्पित है, एक महिला जिसने भगवान यम का सामना किया और उसे अपने पति सत्यवान की जान लेने से रोक दिया।