नवरात्रि चतुर्थ दिन- माँ कुष्मांडा की पूजा करने से रोग-व्याधि से मुक्ति मिलेगी
नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चतुर्थ रूप की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के चतुर्थ रूप के रूप में
मां कुष्मांडा को जाना जाता है। मां कुष्मांडा के नाम का अर्थ कुछ इस प्रकार है- कू अर्थात छोटा,
ऊष्मा अर्थात ऊर्जा और अंड अर्थात ब्रह्मांडीय अंडा। आज हम अपने ब्लॉग में नवरात्रि के चौथे
दिन के विषय में चर्चा करेंगे। जो पूरी तरह से मां कुष्मांडा को समर्पित होता है।
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मां कुष्मांडा कौन है?
मां कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इनके 8 हाथ हैं।
पूरे विश्व को एक गोलाकार अंडे के रूप में दर्शाया गया है और मां कुष्मांडा के संपर्क में कहा जाता है
कि माता अपने दिव्य दृष्टि और मुस्कान से इस पूरे संसार के अंधकार को समाप्त कर देती हैं।
कहा जाता है कि देवी पार्वती सूर्य के मध्य में विराजमान रहती हैं और इन्हीं कारणों से वह ब्रह्मांड को
ऊर्जा मुक्त करती हैं। इसलिए उन्होंने मां कुष्मांडा का अवतार लिया था।
मां के संबंध में कहा जाता है कि वह सूर्य के समान दीप्तिमान हैं और उनमें उपचार करने की शक्तियाँ
भी प्रचुर मात्रा में होता हैं।
माता का स्वरूप कुछ इस प्रकार का होता है- माता कुष्मांडा के बाएं हाथ में अमृत कलश,
जाप करने की माला, गदा और चक्र होता है एवं दाहिने हाथ में कमंडल,धनुष, बाण और कमल का फूल रहता है।
माता की सवारी सिंह है।
हरा रंग माता का प्रिय रंग है। इसलिए आप नवरात्रि के चौथे दिन यदि हरा रंग का कपड़ा पहन कर पूजा
करेंगे तो माता कुष्मांडा आपसे बेहद प्रसन्न होंगी।
माता कुष्मांडा की पूजा करने से रोग-व्याधि से मुक्ति मिलेगी
माता कुष्मांडा की पूजा करने से मनुष्य के अंदर का रोग व्याधि जड़ से समाप्त हो जाता है।
कहां जाता है कि एक बार जो माता की पूजा भक्ति भाव से कर लेता है उसे माता प्रसन्न होकर
आजीवन के लिए आशीर्वाद दे देती हैं।
यदि आपने कभी माता कुष्मांडा का पूजा नहीं किया है और आप युगों से किसी रोग से जूझ रहे हैं।
तो एक बार माता की पूजा करके देखे आपको सभी प्रकार के रोगों से धीरे-धीरे मुक्ति मिल जाएगी।
नवरात्रि चतुर्थ दिन- माता कूष्मांडा पूजन विधि
माता कुष्मांडा की पूजा पूरे भक्ति भाव से करने पर माता प्रसन्न होकर अपने भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य,
धन और ढेर सारा ऊर्जा प्रदान करती हैं। ताकि भक्त माता कुष्मांडा की तरह संपूर्ण जगत में अपने
अंदर की उर्जा से सफलता प्राप्त कर सकें।
माता कुष्मांडा की पूजा भली-भांति करने से उनके भक्त गण इस संसार के भवसागर से पार हो जाते हैं।
इस दिन किसी अभिमानी विवाहित स्त्री की पूजा करना चाहिए और स्त्री को भोजन में दही, हलवा खिलाना चाहिए।
इसके बाद मेवा और मेवे के बाद फल अर्पित करना चाहिए। इससे पूजा की जाने वाली महिला को
सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जिससे माता कुष्मांडा प्रसन्न होकर अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती है।
माता अल्प भक्ति से ही प्रसन्न हो जाती हैं,और अपने भक्तों को ढेर सारा आशीर्वाद देती हैं।
माँ कूष्मांडा का मंत्र
यदि आप माता कूष्मांडा की उपासना करना चाहते हैं तो उसके लिए मंत्र हैं-
“कुत्सित: कूष्मा
कूष्मा-त्रिविधतापयुत:
संसार:, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां
यस्या: सा कूष्मांडा”
यदि आप माता कुष्मांडा के लिए सप्तशती का मंत्र पढ़ना चाहते हैं तो उसके लिए मंत्र है-
“या देवी सर्वभूतेषु
मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नम:।।”
दोस्तों माता कुष्मांडा देवी दुर्गा का चतुर्थ रूप है जिसकी पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है।
माता अपने भक्तों के भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें सभी दुखों से मुक्त कर देती है। माता के स्वरूप में
एक अजीब सा तेज प्रतीत होता है। वही तेज उनके भक्तों के लिए आशीर्वाद होता है। यदि आप भी
माता कुष्मांडा का आशीर्वाद लेना चाहते हैं तो अवश्य ही नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्मांडा की
पूजा कीजिए और माता को प्रसन्न कर जीवन भर के लिए आशीर्वाद ग्रहण कीजिए।
नवरात्रि चतुर्थ दिन- माँ कुष्मांडा की पूजा करने से रोग-व्याधि से मुक्ति मिलेगी