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स्नान करते वक्त ना करें ये गलतियाँ वरना पछताना पड़ेगा

प्राचीन शास्त्र के अनुसार तरक्की, धनसम्पन्नता, शारीरिक स्वास्थ्य के नियम है। स्नान करते वक्त ना करें ये गलतियाँ वरना पछताना पड़ेगा । स्नान कब और कैसे करना चाहिए, नियम। हमारे हिंदू शास्त्रों में स्नान के चार प्रकार बताए गए हैं। जैसे

स्नान के प्रकार

इस प्रकार के स्नान को धार्मिक अवस्थाएं, पूजाओं, व्रतों और विशेष अवसरों के समय में आचार्यों द्वारा निर्धारित किया जाता है। इसमें विशेष शुद्धि और आत्मसंयम के साथ स्नान किया जाता है।

नैमित्तिक स्नान 

इस प्रकार के स्नान को संबंधित घटनाओं, पर्वों और समारोहों के अनुसार निर्धारित किया जाता है। इसमें विशेष रूप से प्रायः नियमित स्नान किया जाता है।

काम्य स्नान

 इस प्रकार के स्नान को व्यक्तिगत इच्छा और प्रयोजनों के लिए किया जाता है. इसमें स्नान के लिए विशेष समय, स्थान, दिन आदि का ध्यान रखा जाता है.

नित्य स्नान 

इस प्रकार का स्नान नित्य रूप से नियमित रूप से किया जाता है। शास्त्रों में नित्य स्नान को स्नान का सबसे महत्वपूर्ण और आवश्यक माना जाता है। यह स्नान दिन के निश्चित समय पर और नियमित तापमान, जल की गुणवत्ता, और सामग्री के साथ किया जाता है।

शास्त्रों में स्नान करने के कुछ विशेष नियम हो सकते हैं, जो अलग-अलग धर्मों और संप्रदायों में भिन्न हो सकते हैं। यहां कुछ सामान्य नियमों का उल्लेख किया गया है:

स्नान समय

धार्मिक शास्त्रों में स्नान के विशेष समय का उल्लेख किया जाता है। कुछ संप्रदायों में सवेरे उठकर या ब्रह्ममुहूर्त (प्रातःकाल) में स्नान करने की सलाह दी जाती है। यह अलग-अलग धर्मों के आचार्यों द्वारा निर्धारित हो सकता है।

मन्त्र जप

कुछ धार्मिक संप्रदायों में स्नान के दौरान विशेष मन्त्र जप करने की सलाह दी जाती है। इससे व्यक्ति को आध्यात्मिक एवं मानसिक शुद्धि मिलती है और स्नान की प्रक्रिया को धार्मिक भावना।

आयुर्वेद के अनुसार स्नान के नियम

आयुर्वेद में नहाने का समय और तकनीकों को ध्यान में रखा जाता है। यहां कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है:

तापमान

आयुर्वेद के अनुसार, नहाने का समय और तापमान महत्वपूर्ण होता है। आयुर्वेद का कहना है कि गर्मी के मौसम में ठंडे जल से नहाना अधिक लाभदायक होता है, जबकि सर्दी के मौसम में गर्म जल से नहाना अधिक उपयुक्त होता है। 

समय

आयुर्वेद में स्नान के लिए सुबह का समय सर्वोत्तम माना जाता है। सुबह का समय प्राकृतिक उषा काल होता है और वात दोष (वायु तत्व) इस समय अधिक प्रबल होता है। नहाने से पहले आपको उठकर अपने शरीर को साफ़ पानी से धोना चाहिए ताकि दुर्गंध और मल मिट्टी के कणों का निस्तारण हो सके।

नहाने की तकनीक

आयुर्वेद में स्नान के दौरान नहाने की तकनीकों को भी महत्व दिया जाता है। इसमें संग्रहीत पानी का उपयोग करने, तापमान को सामान्य रखने, और शरीर के अंगों को उच्च वात तत्व से बचाने के लिए ध्यान देने की सलाह दी जाती है।

यदि आप विशेष आयुर्वेदिक स्नान तकनीकों के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं, तो आपको एक व्यावसायिक आयुर्वेद वैद्य या आयुर्वेदिक सलाहकार से संपर्क करना सुझावित किया जाता है। वे आपको विशेष रूप से आपके शारीरिक प्रकृति, दोष प्रकृति, और रोग के आधार पर उपयुक्त नहाने की तकनीक बता सकेंगे।

स्नान करते वक्त ना करें ये गलतियाँ

आयुर्वेद में नहाने का सही समय प्राकृतिक उषा काल (ब्रह्ममुहूर्त) को माना जाता है, जो भोर के आसमानी प्रकाश के पहले 1-2 घंटों के बीच में होता है। यह समय सूर्योदय से पहले का होता है और सृष्टि की प्रारंभिक ऊर्जा और शांति का संकेत माना जाता है। इसलिए समय चुनने में गलती नहीं करनी चाहिये। वरना ब्रह्ममुहूर्त के फायदे नहीं मिलेंगे।

सुबह का समय प्रसन्न, प्राकृतिक और शांतिपूर्ण होता है जिससे वात दोष (वायु तत्व) शरीर में अधिक प्रबल होता है। इसलिए, नहाने का समय उषा काल में चुनने से शरीर के लिए लाभकारी होता है क्योंकि यह वात दोष को neutralize करने में मदद करता है।

सार्वजनिक स्थान पर स्नान करते समय खासकर महिलाओं को बुरी नजरों से बचना चाहिये। पवित्र भावना से मंत्रजाप करते हुए स्नान करना चाहिये।

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