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क्या आपकी कुंडली में है करोड़पति बनने का योग? ऐसे पहचानें

क्या आपकी कुंडली में है करोड़पति बनने का योग? ऐसे पहचानें

कुछ ग्रह शुभ और वांछित स्थान में होंगे तो आपको अमीर बनने से कोई नहीं रोक सकता।क्या आपकी कुंडली में है करोड़पति बनने का योग? ऐसे पहचानें। करोड़पति बनना आर्थिक स्थिरता और सुरक्षा का माध्यम होता है। यह व्यक्ति को विभिन्न आर्थिक मामलों में सुरक्षित महसूस करने और अपने आप को आर्थिक तंगी और चिंता से मुक्त करने में मदद करता है। वे लोगों के बीच आदर्श बनते हैं और समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करते हैं।धन की आपूर्ति व्यक्ति को दान और सहायता करने की क्षमता प्रदान करती है। 

दसवें भाव में सूर्य

धनुराशि के दसवें भाव में सूर्य और मीन राशि के चौथे भाव में मंगल के होने पर, व्यक्ति को सरकारी ओफिस की अधिकारिक पदों पर बैठने की संभावना होती है और वे आपातकालीन प्रमुख, उच्च अधिकारी, न्यायाधीश, राजनेता आदि बन सकते हैं। इसके साथ ही, इन ग्रहों की विपरीत स्थिति में या दोषग्रस्त होने पर यह लक्षण अस्त कर देते हैं।

ज्योतिष शास्त्र में कहा जाता है कि जब बृहस्पति (गुरु) कर्क, धनु या मीन राशि में स्थित होता है और साथ ही वह पांचवें भाव का स्वामी होता है और दसवें भाव में स्थित होता है, तो इस योग के अनुसार व्यक्ति को उनकी पुत्री या पुत्र के माध्यम से बहुतायत धन-संपदा प्राप्त होती है। यह व्यक्ति के जीवन में वित्तीय स्थिरता और समृद्धि का संकेत माना जाता है।

शनि, बुध और शुक्र ग्रह एक साथ

ऐसा कहा जाता है कि जब शनि, बुध और शुक्र ग्रह एक साथ एक भाव में स्थित होते हैं, तो इस योग के अनुसार व्यक्ति को व्यापारिक क्षेत्र में उन्नति मिलती है और वह धन संपादित करने में सफल होता है। यह व्यक्ति व्यापार, वाणिज्यिक गतिविधियों, वित्तीय निवेश आदि में सफलता प्राप्त कर सकता है और अपार संपत्ति का आदान-प्रदान कर सकता है।

जब बुध, शुक्र और बृहस्पति ग्रह एक भाव में साथ बैठे हों, तो ऐसे व्यक्ति को धार्मिक कार्यों के माध्यम से धन की प्राप्ति होती है। इस योग के अनुसार, व्यक्ति धार्मिक कार्यों में अपनी प्रवृत्ति और रूचि द्वारा सफलता प्राप्त करता है और उन्हें अपार धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।

यह योग व्यक्ति को पुरोहित, पंडित, ज्योतिष, कथाकार या धार्मिक संस्था के प्रमुख बनाने के लिए अवसर प्रदान कर सकता है। इसके माध्यम से व्यक्ति अपने धार्मिक अनुष्ठान, उपासना, पुण्यकर्म आदि के माध्यम से आर्थिक आदान-प्रदान करता है और अपार धन संपादित करता है।

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